Jaipur : राजस्थान सरकार एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा के अधिकार का कानून जल्द से जल्द लाये : जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान

जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान की एक दिवसीय राज्य स्तरीय बैठक दिनांक 29 नवम्बर 2022 को राजस्थान प्रोढ़ शिक्षण समिती, जयपुर में आयोजित की गयी जिसमें राज्य भर के विभिन्न ज़िलों से लगभग 85 स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य अधिकारों पर कार्यरत संस्थानों एवं संगठनों के प्रतिनिधियों तथा जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भाग लिया. बैठक में राज्य के विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों पर चर्चा की गयी जिसमें से स्वास्थ्य का अधिकार कानून (Right to Health Act) पर अहम चर्चा रही. बैठक उपरान्त मीडिया को संबोधित करते हुए अभियान के सदस्यों ने इस विधेयक के लाये जाने में सरकार द्वारा लम्बी देरी पर चिंता व्यक्त की और सरकार की मंशा पर सवालिया निशान खड़े किये. अभियान ने सरकार द्वारा 22 सितम्बर 2022 को विधान सभा में पेश किये “राजस्थान स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक 2022” में आवश्यक सुधार हेतु अविलम्ब प्रवर समिती का गठन करने और विधेयक को जल्द से जल्द पारित किये जाने की मांग उठाई है.
राजस्थान में स्वास्थ्य अधिकार कानून का इतिहास :
जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान ने राजस्थान विधान सभा चुनाव 2018 से पूर्व सभी राजनेतिक दलों के एक जन मंच में इस कानून को लाये जाने हेतु सभी दलों से अपील की। कोंग्रस के प्रतिनिधि महोदय ने इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे सम्मलित करने का आशवासन दिया ओर सम्मलित भी किया। कोग्रेस सरकार बनने के तुरंत बाद से ही अभियान ने क़ानून बनाने के लिए पैरवी प्रारंभ की और क़ानून का एक प्रारूप बना कर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री और अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकत्सा को प्रस्तुत किया। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश से गठित समिति में भी सदस्य के रूप में जन स्वास्थ्य अभियान सदस्यों ने कुछ संशोधनो के साथ नया प्रारूप बना कर प्रस्तुत किया। किन्तु सरकार ने मार्च 2022 को अतिरिक्त संशोधनों के साथ एक नया प्रारूप बना, जो की जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा दिए गए प्रारूप की तुलना में कहीं ज़्यादा कमज़ोर था, को चिकित्सा विभाग कि वेब साइट पर सुझावों के लिए डाला। अभियान ने इस पर 29 पेज में अपने सुझाव सरकार को प्रेषित किए।
उक्त ड्राफ्ट में अनेकों संशोधनों के बाद 22 सितम्बर 2022 को सरकार ने एक बिल का एक नया प्रारूप राजस्थान विधान सभा में प्रस्तुत किया जो की मार्च वाले प्रारूप से भिन्न और कमजोर था। 23 सितम्बर 2022 को विधान सभा में लगभग 28 विधायकों ने इस विधेयक से सम्बंधित चर्चा में भाग लिया और अपने मत प्रकट किए। 23 सितम्बर 2022 को जब सदन में चर्चा हो रही थी तब चिकत्सकों के एक दल ने विधान सभा के बाहर अनेक घंटो तक विधेयक के विरोध में प्रदर्शन किया और उस ही दिन सदन में चर्चा के पश्चात इस विधेयक को विधायकों कि प्रवर समिति को प्रेषित करने का निर्णय पारित किया गया। चर्चा के बाद विधान सभा के बाहर राजस्थान के स्वास्थ्य एवं चिकत्सा मंत्री श्री परसादी लाल मीणा ने पत्रकारों के समक्ष घोषणा कि की इस विधेयक के लिए प्रवर समिति गठित कर एक सप्ताह में उनके सुझाव प्राप्त कर विधान सभा का विशेष सत्र बुला कर इस विधेयक को पारित करवा लिया जाएगा।
वर्तमान स्तिथि :
दो माह से ऊपर निकल जाने के बाद भी अभी तक प्रवर समिति का गठन नहीं हुआ है जिसकी वजह से कानून लाये जाने की पूरी प्रक्रिया अधर में अटकी हुई है। राज्य के स्वास्थ्य सचिव द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में उन्होंने संभागीय सयुंक्त निदेशको को यह तो निर्देश दिए की वे अपने क्षेत्र में निजी चिकत्सकों से सम्पर्क कर उनका इस विधेयक के विषय में मत जान उन्हें सूचित करे, किन्तु विभाग द्वारा समाज सेवी संगठनो का मत जानने के लिए अभी तक कोई प्रयत्न नहीं किया गया हे। जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान ने विधेयक पर अपने सुझाव सरकार को लिखित में प्रेषित किये हैं. अभियान के प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य मंत्री एवं स्वास्थ्य सचिव से मुलाक़ात में यह भी सुझाव रखा की निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के प्रतिनिधि और समाज सेवी संगठनो के प्रतिनिधियों के बीच सरकार द्वारा एक संवाद का आयोजन किया जाये जिससे कि एक दूसरे के पक्ष को समझ उनका मिलकर निराकरण किया जा सके। स्वास्थ्य सचिव ने इसके लिए सहमति तो जतायी और ऐसी बेठक़ जल्द ही आयोजित करने का आशवासन भी दिया, किन्तु लगभग एक माह के पश्चात् भी इस प्रकार की कोई भी बैठक अब तक सरकार द्वारा आयोजित नहीं की गयी है।
अभियान की मांग :
अभियान की सर्वप्रथम मांग है की प्रवर समिती का जल्द से जल्द गठन हो ताकि विधेयक में आवश्यक सुधार की प्रक्रिया को तुरंत आगे बढाया जा सके. दूसरी मांग ये है की समाज सेवी संगठनों के साथ जल्द से जल्द एक चर्चा का आयोजन सरकार द्वारा किया जाये जिस से की उनके सुझाव विधेयक में शामिल किये जा सकें.
अभियान का मानना है की विधेयक का वर्तमान प्रारूप कई मायनों में कमज़ोर है और उसमें कुछ अहम संशोधनों की आवश्यकता है. अभियान के कुछ सुझाव इस प्रकार हैं जो की लिखित में सरकार को पहले ही सोपें जा चुके हैं :
• जबकि मार्च 2022 में सुझावों के लिए सार्वजनिक डोमेन पर रखे गए बिल के पिछले मसौदे में एक खंड में “स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी” शब्द का इस्तेमाल किया गया था, वर्तमान बिल ‘गारंटी’ शब्द को पूरी तरह से नज़रंदाज़ करता है जिस से सरकार द्वारा लोगों को अधिकार स्वरुप स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी देने की मंशा पर कई प्रश्नचिंह खड़े होते हैं । विधेयक में “स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी” को पुनः जोड़ा जाना चाहिए.
• वर्तमान विधेयक में इस प्रकार का कोई प्रावधान स्पष्ट नहीं किया गया हे की सरकार कितनी दूरी पर निश्चित प्रकार की स्वास्थ्य सेवाए गुणवत्ता के साथ देने के लिए वचनबद्ध होगी. अतः विधेयक में यह सम्मिलित किया जाना चाहिए की राज्य में प्रत्येक नागरिक को आधे घंटे पैदल चलने कि दूरी पर बुनियादी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधा, 12 किमी कि दूरी पर सम्पूर्ण प्राथमिक चिकित्सा सुविधा, किसी भी मोटर वाहन से 1 घंटे कि दूरी पर गंभीर रोग चिकित्सा सुविधा और 100 से 150 किमी कि दूरी पर अतिगंभीर रोग चिकित्सा सुविधा सरकार सभी को निशुल्क उपलब्ध कराएगी.
• यह अधिनियम पूरी तरह से अस्पताल में प्रदत्त सेवाओं पर केंद्रित है और समुदाय स्तर पर प्रदान की जाने वाली आउटरीच सेवाओं जिसमें टीकाकरण और एएनसी (प्रसव पूर्व देखभाल) जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं शामिल हैं और जो की प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा है की पूरी तरह से उपेक्षा की गयी है। साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की योजना तैयार करने और उनकी निगरानी में समुदाय की भागीदारी के महत्वपूर्ण घटक की भी अनदेखा किया गया है. स्वास्थ्य सेवा सम्बंधित इन घटकों को भी विधेयक में जोड़ा जाना चाहिए.
• निजी चिकित्सालयों द्वारा निशुल्क आपातकालीन उपचार एवं सहायत्ता में किन रोग परिस्तिथियों को सम्मलित किया गया हे को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है जिसके चलते निजी क्षेत्र के चिकित्सक भ्रमित महसूस कर रहे हैं । इस सन्दर्भ में विधेयक में और स्पष्टता लायी जानी चाहिए व साथ ही निजी चिकित्सालयों द्वारा अल्पकालिक आपातकालीन उपचार निःशुल्क प्रदान किये जाने पर खर्च की भरपाई के लिए एक कोश का प्रावधान किया जाना चाहिए।
• जबकि पिछले मसौदे में सरकार द्वारा विशिष्ट दायित्वों को पूरा करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी, वर्तमान विधेयक नियमों के प्रारूपण सहित किसी भी दायित्व को पूरा करने हेतु समय सीमा तय करने से बचता नज़र आता है! विधेयक में विभिन्न दायित्वों को पूर्ण करने की समयावधि स्पष्ट रूप से अंकित की जानी चाहिए.
• अधिनियम में उल्लिखित राज्य और ब्लॉक प्राधिकरणों की संरचना अत्यधिक विवादास्पद है, जिसमें सिविल सोसाइटी सदस्यों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, पैरामेडिक्स आदि का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जो इन निकायों को अत्यंत नौकरशाही और गैर-समावेशी बनाता हैं। ऐसे में ये प्राधिकरण कैसे निष्पक्ष तरीके से काम कर पाएंगे यह एक बड़ा सवाल है। अतः उक्त प्राधिकरणों में गैर सरकारी प्रतिनिधियों एवं चिकित्सकों के प्रतिनिधित्व को बढाया जाना चाहिए.
• अधिनियम की धारा 14 अत्यंत समस्याप्रद प्रतीत होती है। जबकि अधिनियम स्वास्थ्य के लिए एक कानूनी अधिकार बनाने का इरादा रखता है, लेकिन यह खंड किसी भी पीड़ित को किसी स्वास्थ्य मामले के लिए सिविल कोर्ट में जाने से रोकता है । विभागीय जांच और निर्णय से संतुष्ट नहीं होने पर किसी पीड़ित को कानूनी कार्रवाई करने के अधिकार से वंचित करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ जाता है और संवैधानिक अधिकारों हनन है। इसलिए इस धारा को पूरी तरह से हटाया जाना चाहिए।
• विधेयक में ऐसे कई शब्द भी हैं जिन्हें परिभाषित नहीं किया गया है (जैसे पहुंच, स्वीकार्यता, रेफरल परिवहन, आपातकालीन परिवहन, गोपनीयता इत्यादि) जिसकी वजह से इनकी अलग-अलग लोगों द्वारा अलग अलग व्याख्याएं निकली जा सकती हैं। इन शब्दों को परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है.
• यह विधेयक विशेष आवश्यकता वाले रोगियों, जैसे की दिव्यान्ग्जन, दुर्लभ बीमारियों (rare diseases) से ग्रसित, मानसिक स्वास्थ्य समस्यायों से ग्रसित, व्यावसायिक स्वास्थ्य समस्याओं (occupational health) से ग्रसित, उपशामक देखभाल (palliative care) इत्यादि की आवश्यकता वाले रोगियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच बढ़ाने हेतु सरकार की प्रतिबद्धता का भी उल्लेख नहीं करता है, जो की लम्बे समय से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उपेक्षित रहे हैं। स्वास्थ्य के इन महत्वपूर्ण घटकों को विधेयक में जोड़ा जाना चाहिए.
• स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की सुरक्षा और सुरक्षात्मक गियर और उपकरणों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करने जैसे सरकार के अहम दायित्व को भी विधेयक में सम्मिल्लित नहीं किया गया है. इसे सम्मिल्लित किया जाना चाहिए.
• साथ ही विधेयक तर्कसंगत प्रिस्क्रिप्शन और उपचार प्रथाओं (rational prescription and treatment practices), निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के विनियमन, स्वास्थ्य संस्थानों की पारदर्शिता, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता या इनकार के मामले में सेवाएं देने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था जैसे सरकार के महत्वपूर्ण दायित्वों पर भी चुप है। इन सभी घटकों को भी विधेयक में जोड़ा जाना चाहिए.
स्वास्थ्य सेवा के अधिकार के कानून के लागू किये जाने से राज्य सरकार पर कोई अधिक आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा यदि सरकार वर्तमान में उपलब्ध चिकित्सक, अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, भवन, उपकरण, औषधि इत्यादि को सुव्यवस्थित व तर्कसंगत रूप से वितरण व उपयोग करे व निगरानी प्रणाली को मजबूत करे. अतः जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान की सरकार से मांग है की बिना किसी विलम्ब के जल्द से जल्द स्वास्थ्य सेवा के अधिकार का एक मजबूत कानून राज्य में लाया जाये. यदि यह कानून पारित होता है तो राजस्थान ऐसा कानून लाने वाला देश का पहला राज्य होगा.
अधिक जानकारी हेतु कृपया संपर्क करें:
छाया पचौली – 9828416876, डॉ. नरेन्द्र गुप्ता- 9414110328, राजन चौधरी – 9414080218