पत्रकारिता के लिए प्रशस्ति सम्मान पत्र हमारे बाड़मेर जिले के आमजनों का गौरव है : राजू चारण

बाड़मेर 30 मई ,पत्रकारो के संगठन जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंड़िया ने 30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर देशभर के उन पत्रकारों को ” पत्रकारिता प्रशस्ति पत्र सम्मान ” डिजिटल सम्मान पत्र के माध्यम से सम्मानित करने का निर्णय किया गया था । जिन्होने अपनी निर्भीक पत्रकारिता के साथ ही दूर दराज ग्रामीण इलाकों में बसे हुए आमजन को राहत पहुंचाने के लिए, मूलभूत समस्याओं का त्वरित समाधान करने वाली खबरों को अपनी पत्रकारिता और पत्रकारों की समस्याओ को अपने समाचार पत्र , न्यूज पोर्टल व चैनलों के माध्यम से समय-समय पर उठाया है।
जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने बताया कि देश में मौजूदा हालात को देखते हुए निर्भीक पत्रकारिता के लिए आ रही समस्याओ को समाज और शासन- सचिवालय, जिला प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों तक पहुंचाने के लिए अपनी कलम के माध्यम से पिछले दो दशकों से बाड़मेर जिले में जनता जनार्दन की आवाजें बुलंद की है। इसके लिए जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया सलाहकार समिति के सदस्य और राजस्थान संगठन से बाड़मेर के वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण को सम्मानित किया गया है।
” पत्रकारिता प्रशस्ति पत्र सम्मान ” मिलने पर वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण ने बताया कि यह मान सम्मान पिछले दो दशक से हमारे अपनों के दुःख दर्दों में शामिल होने के कारण ही मिला है यह हमारे बाड़मेर जिले की जनता जनार्दन का गौरव है।
इस अवसर पर देशभर के मिलने वालें अधिकारियों, शासन सचिवालय जयपुर, पत्रकारों, राजनीतिक नेताओं, समाजसेवियों, पिछले दो तीन सालों से कोराना भड़भड़ी के कोराना वारियर्स की भूमिका निभाते हमारे चिकित्सा समूह ओर चारण समाज के सभी शुभचिंतकों द्वारा हाईटेक प्रणाली के साधनों पर वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण को बधाईयां देने का आज़ सुबह से ही तांता लग गया।
राष्ट्रीय महासचिव दानिश जमाल ने बताया कि हिंदी भाषा में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है।
जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। परतंत्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था।
परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। हां, यह जरूर है कि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।
हालांकि ‘उदन्त मार्तण्ड’ एक साहसिक प्रयोग था, लेकिन पैसों के अभाव में यह एक साल भी नहीं प्रकाशित हो पाया। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छपी। हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात की हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था।
पंडित जुगल किशोर ने सरकार ने बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामंदी नहीं दी।
पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। आज का दौर हमारे देश में बिलकुल ही बदल चुका है। औधोगिक घरानों और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले लोगों द्वारा पत्रकारिता में बहुत ज्यादा आर्थिक निवेश हुआ है और इसे आज-कल उद्योग का दर्जा हासिल हो चुका है। हिंदी के समाचार पत्र पाठकों की संख्या बढ़ी है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है