श्री बाबा रामदेव राम रसोड़ा के संस्थापक भक्त चम्पालाल राजपुरोहित डंडाली का जीवन चरित्र
भक्त चंपालाल जी राजपुरोहित का शुरू से ही जीवन काल सेवा और भक्ति भाव में रहा। भक्त चंपालाल जी ने अपने गृहस्थ धर्म को निभाते हुए अपने गांव डंडाली में गुजरात से पैदल यात्री जो रणुजा में बाबा रामदेव के दर्शन हेतु जाने वाले सभी भक्तों को आप अपनी दुकान पर सारी खाने पीने की व्यवस्था करके सभी भक्तों को भोजनशाला खोलकर नि: शुल्क अन्न जल एवं ठहरने की उत्तम सेवा देते थे।
धीरे-धीरे अपना भाव सेवा की तरफ बढ़ता गया और गांव के बीच एक खेमा बाबा एवं गोगा जी महाराज के मंदिर की नींव का शुभारंभ किया और पीपराला में एक भाखरी के पास वोंकल माता के मंदिर में भी सेवा देकर अपनी भुमिका निभाई फिर धीरे धीरे कुछ समय के बाद संत श्री चेतनानंद जी महाराज से भेंट हुई और संत श्री चेतनानंद जी महाराज कभी कभी उनकी दुकान पर आते थे तब कहते थे कि चम्पालाल जी आपका सेवा करने का भाव अधिक है इसलिए आप गांव के बाहर में तालाब के पास वहां छोटा सा रामदेव जी का मंदिर बना कर आने वाले पैदल यात्रियों की सेवा में लग जाओ वह आपके लिए बहुत ही बेहतर सेवा होगी तब भक्त चंपालाल जी ने गुरु जी के वचनों का पालन करते हुए आप गांव के बाहर तालाब के पास एक छोटा सा रामदेव जी महाराज का मंदिर बना कर पैदल यात्रियों की सेवा में लग गए। उस समय वहां पर श्री 1008 श्री चेतनानंद जी महाराज ने अपनी इच्छा से चम्पालाल जी के सेवा का भाव देखकर मंदिर में अपने हाथों से बाबा रामदेव जी के घोड़े को स्थापित किया और भक्त चम्पालाल को आशीर्वाद दिया कि आप खूब सेवा करो नर की सेवा ही नारायण की सेवा है उस दिन से भक्त चंपालाल जी बाबा रामदेव जी महाराज की सेवा के साथ साथ पैदल यात्रियों की सेवा करने लगे तब वहां पानी की व्यवस्था नहीं थी इसलिए भक्त चंपालाल जी खुद अपने सिर पर पानी का घड़ा तालाब से भरकर लाते थे और पैदल यात्रियों की सेवा के साथ-साथ पेड़ पौधे भी लगाने शुरू कर दिए