बहुत अच्छी है भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों में वार्ता – अशोक मधुप
भारत और चीन के बीच दौलत बेग ओल्डी और चुशुल में एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा )पर मेजर जनरल लेवल की बैठक हुई । इससे पहले 14 अगस्त को विवाद का हल निकालने के लिए कमांडर स्तर की बैठक भी हुई थी। दोनों देशों की सेना आमने −सामने है,इसके बावजूद सेना अधिकारियों के बीच सीमा −विवाद सुलझाने पर बात हो रही है,ये बहुत अच्छा है।बात होती रहनी चाहिए। बात होगी तो समस्या के निदान के रास्ते भी निकलेंगे। सुलह का मार्ग बनेगा। सुलह की बात न बने, रिश्तों में कटुता तो नही रहेगी। ऐसे ही हालात पर प्रसिद्ध शायर निदा फाजली का शेर है− दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता,दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए।
दोनों देशों की सेनाएं लगभग तीन साल से आधुनिक शस्त्रों के साथ आमने −सामने हैं। भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पार पूर्वी लद्दाख सेक्टर में 50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है। कई जगह तो वह बहुत ही नजदीक हैं।भारत चीन के बीच सीमा विवाद का कोई हल नही निकल रहा। ।सीमा पर तनाव होने के बावजूद शांति है। तीन साल पहले हुए गलवान घाटी संघर्ष के और बाद में 2022 में अरूणाचल के तवांग घाटी में बाद कोई नही घटना नही हुई। यह सब बहुत ही अच्छा है।दूसरी जगह पर सीमा विवाद या तनाव कम करने के लिए राजनैतिक स्तर पर बात होती रही है। राजनेताओं को सही स्थिति की जानकारी नही होती। इसलिए विवाद के हल भी ठीक नही होते। सेना और सेनाके अधिकारी को मौके और समस्याके एक− एक पाइंट की जानकरी हाती है। यहां अच्छा यह है कि सेना के उच्च अधिकारी आपस में लगातार बात कर रहे हैं। इससे आपस में एक विश्वास पैदा होता है।आपस की गलतफहमी दूर होती है। चीन का विश्वास नही किया जा सकता किंतु यह भी अच्छा है कि आपस में विवाद के निस्तारण के लिए बातचीत चलती रहनी चाहिए।
भारत और चीन के बीच दौलत बेग ओल्डी और चुशुल में एलएसी( वास्तविक नियंत्रण रेखा )पर मेजर जनरल लेवल की हाल में बैठक हुई। इस दौरान दोनों देशों के बीच जारी सीमा विवाद पर डिटेल में चर्चा की गई। मेजर जनरल पीके मिश्रा और मेजर जनरल हरिहरन ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। बैठक में देपसांग प्लेन और सीएनएन जंक्शन के मुद्दे का समाधान निकालने पर चर्चा हुई। ये बैठक भारत- चीन के बीच 14 अगस्त को हुई 19वीं कमांडर लेवल की बैठक के बाद की गई है, जिसमें दोनों देश विवादों को बातचीत और समझौतों के जरिए सुलझाने पर राजी हुए थे।दौलत बेग ओल्डी देसपांग के पास है। जहां चीनी सैनिक लगातार भारतीय सैनिकों की पैट्रोलिंग में रुकावटें पैदा करते रहते हैं। वहीं चुशुल पैंगोंग सो झील के दक्षिणी किनारे पर है। जहां भारतीय सैनिकों ने 2020 में एक ऑपरेशन के तहत कई ऊंची जगहों पर कब्जा कर लिया था।रिपोर्ट के मुताबिक मेजर जनरल लेवल की बैठक में दोनों देशों की सेनाओं के लिए पैट्रोलिंग से जुड़े ग्राउंड रूल्स बनाए गए हैं, ताकि आगे किसी भी तरह के संघर्ष से बचा जा सके। साथ ही तै हुआ कि दोनों देशों के सैनिकों के बीच भरोसा बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाएंगे। मेजर जनरल लेवल की बैठक के बाद दोनों देशों के बीच ब्रिगेड कमांडर और कमांडिंग ऑफिसर लेवल की भी बैठक होगी। 19वें दौर की वार्ता से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ व्यापक वार्ता की थी और उसके बाद चार महीने के अंतराल के बाद कोर कमांडर वार्ता का केवल 19वां दौर ही हुआ था।
ये सब चल रहा है,ऐसे में सूचना है कि साउथ अफ्रीका में 22 से 24 अगस्त को ब्रिक्स समिट होने वाला है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हो सकती है। इससे पहले दोनों नेता पिछले साल बाली में जी −बीस समिट के दौरान मिले थे।प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई थी। डिनर के दौरान मोदी और जिनपिंग ने द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने पर चर्चा की थी। दोनों के भारत-चीन के बॉर्डर विवाद को भी डिस्कस किया था।
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी पर करीब तीन साल पहले 2020 में हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि 38 चीनी सैनिक मारे गए थे।हालांकि, चीन इसे लगातार छिपाता रहा। गलवान घाटी पर दोनों देशों के बीच 40 साल बाद ऐसी स्थिति पैदा हुई थी।गलवान पर हुई झड़प के पीछे की वजह यह थी कि गलवान नदी के एक सिरे पर भारतीय सैनिकों अस्थाई पुल बनाने का फैसला लिया था। चीन ने इस क्षेत्र में अवैध रूप से बुनियादी ढांचे का निर्माण करना शुरू कर दिया था। साथ ही, इस क्षेत्र में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा रहा था।
दोनों की सेना आमने −सामने होने पर किसी सैनिक की जरासी खुराफात बड़े युद्ध का रूप ले सकती है।चीन के रवैये को देखते हुए भारत किसी भी स्थिति के लिए तैयार है, इसके बावजूद होना ये चाहिए कि युद्ध न हो। युद्ध से बचा जाए। युद्ध लड़ने वाले दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का बुरी तरह खत्म कर देता है।युद्ध देश के विकास को बहुत पीछे धकेल देता है। इसलिए युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए।
हाल के घटनाक्रमों ने दोनों देशों के बीच भविष्य में संघर्ष की संभावना के बारे में चिंताओं की वृद्धि की है। आ रही सूचनाएं बताती है कि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है। चीन का नेतृत्व बार – बार सेना को युद्ध के लिए तैयार करने का आदेश दे रहा है। भारत और चीन के तनावपूर्ण संबंधों को हाल के चीनी उकसावों से बढ़ावा मिला है। इसमें अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के लिये नामों का आवंटन, भारतीय मीडियाकर्मियों को वीजा देने से इनकार करना और युद्ध की तैयारी पर राष्ट्रपति के वक्तव्य आदि शामिल हैं। इन घटनाओं ने चीन के इरादों के बारे में चिंता उत्पन्न की है और भारत को किसी भी स्थिति के लिये तैयार रहने की आवश्यकता है। हालाकि भारत इनसे अनजान नही है। भारत की रक्षा तैयारियों की संमीक्षा की जा रही है।आधुनिक शस्त्र, मिजाइल,द्रोण और अन्य आधुनिक युद्धास्त्र भारत खरीदने में जुटा है।साथ ही उसकी कासेशिश है किअपनी जरूरत का सभी सेन्य सामान देश में ही बने। भारत अपनी सेना को मजबूत और आधुनिक युद्ध के लिए तैयार करने में लगा हुआ है। सीमा पर सड़कों का नेटवर्क बनाया जा रहा है ।वह चीन और पाकिस्तान से लगी सीमा तक सड़के विकसित कर रहा है। हवाई पट्टी बना रहा है। चीन −पाकिस्तान से सटे हवाई अड्डों पर आधुनिक विमान तैनात कर रहा है।युद्ध के समय प्रयाग के लिए नेशनल हाई−वेऔर एक्सप्रेस− वे पर हवाई पटटी विकसित कर रहा है।
चीन भारत के दुश्मन पाकिस्तान से दोस्ती निभाने और आधुनिक शस्त्र देने में लगा है तो हम भी चीन को आइना दिखाने के लिए ऐसा ही कर रहे हैं। चीन की ताइवान पर कुदृष्टि है,वह उसपर कब्जा करना चाहता। ये जानते हुए भारत ने ताइवान को आधुनिक अस्त्र −शास्त्रों से लैस अपना लड़ाकू जहाज भेंट किया है।
चीन का रवैया युद्ध करना नही , युद्ध का होवा खड़ा करके सामने के देश पर दबाव बनाकर लाभ उठाना रहा है।किंतु इस बार वह अपनी इस रणनीति में कामयाब नही हो पा रहा।चीन ने भारत सीमा पर सेना बढ़ाई तो भारत ने भी सीमापर सैना तैनात कर दी। इतना ही नही हमने आधुनिक तोप और लड़ाकू विमान भी तैनात कर दिए हैं। चीन से बात करने के लिए सामने वाले का मजबूत होना और सीना तान कर सामने खड़ा होना जरूरी है । आज भारत इस हालत है। उसने स्पष्ट भी कर दिया है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिये तैयार है। साथ ही ताइवान को लड़ाकू आधुनिक युद्ध पोत भेंट कर अपने इरादे भी स्पष्ट कर दिए हैं।
पूरा देश जानता है कि चीन हमारा दुश्मन है,कभी दोस्त नही हो सकता।इसके बावजूद सस्ते के लालच में हम चीन का बना सामान खरीदतें हैं। हममें देश भक्ति सिर्फ सोशल मीडिया पर नजर आती है।फेसबुक पर नजर आती है,व्हाटसएप पर नजर आती है,इंस्ट्रागाम पर दिखाई देता है। व्यवहार में ऐसा नही है। चीन के सीमा पर सेना तैनात करने के बाद से चीनी सामान बहिष्कार का आंदोलन इस तरह चला था कि लगता था कि कोई भारतीय चीन का बना सामना नही खरीदेगा।किंतु हो इसके विपरीत रहा है। इस साल की पहली छमाही में भारत को चीन का निर्यात 56.53 अरब डॉलर का रहा। यह एक साल पहले के 57.51 अरब डॉलर से 0.9 फीसदी कम है। चीनी कस्टम्स द्वारा जारी आंकड़ों से यह जानकार मिली है।वहीं, चीन को भारत का निर्यात इस अवधि में कुल 9.49 अरब डॉलर रहा। यह एक साल पहले 9.57 अरब डॉलर रहा था। इस तरह साल 2023 की पहली छमाही में व्यापार घाटा एक साल पहले के 67.08 अरब डॉलर से घटकर 47.04 अरब डॉलर रह गया।पिछला साल भारत-चीन व्यापार के लिए बंपर ईयर रहा था। यह पिछले साल 135.98 अरब डॉलर के ऑल टाइम हाई पर पहुंच गया था। साल 2022 में कुल भारत-चीन व्यापार 8.4 फीसदी की बढ़त के साथ एक साल पहले के 125 अरब के आंकड़े को पार कर गया था।भारत चीन को कच्चा माल बेचने का काम करता है जबकि वहां से आयात में भारत ज्यादातर बन बनाए प्रोडक्ट खरीदता है। चीन से भारत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी के अलावा कई तरह के केमिकल ख़रीदता है। ये केमिकल भारत के फ़ार्मा इंडस्ट्री के लिए बेहद अहम हैं। इससे हमारे देश में दवाएं बनाई जाती हैं लेकिन उनकी ओरिजिनल सामग्री चीन से ही आती है।वहीं दूसरी भारत चीन को बड़े पैमाने पर कॉटन, आयरन एंड स्टील, आर्टिफिशियल फूल, अयस्क, स्लैग, राख और ऑर्गेनिक केमिकल बेचने का काम करता है।साल 2021-22 में भारत ने चीन से करीब तीन हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदा है। इसमें इलेक्ट्रिकल मशीनरी, उपकरण, स्पेयर पार्ट्स, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन और दूसरी कई चीजें शामिल हैं।चीन का दुनिया का व्यापार पांच प्रतिशत गिरा है। ऐसे भारत से व्यापार में 0.9 फीसदी कम होना कोई अर्थ नही रखता। भारत द्वारा चीन से खरीद में कमी पांच प्रतिशत से ज्यादा हुई होती , तब माना जाता कि व्यापार में कमी आई है।
व्यापारिक दृष्टि से भारत चीन पर काफी मात्रा में निर्भर है। भारत को चीन को झुकाने के लिए सामान का आयात कम करके शून्य पर लाना होगा। उस पर निर्भरता कम करनी होगी।चीन वैसे ही अंदरूनी आर्थिक मोर्चे पर संकट से है। हम चीन से निर्यात कम करदें, उसके दीमाग सही हो जाएंगे। उसकी सारी हेकड़ी खत्म हो जाएगी।चीन की हेकड़ी निकालने के लिए जरूरी यह है कि भारत अपने को सभी क्षेत्र में आत्म निर्भर ही नही करे।साथ ही चीन को कमजोर करने के लिए उससे व्यापार लगातार सीमित कर शून्य पर लें आएं। जिस दिन चीन से आयात 50 प्रतिशत भी घट गया ,उसी दिन चीन भारत के सामने घुटनेे टेकने की हालत में आ जाएगा।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)