समाज के लिए कैंसर है भ्रष्टाचार – अमित गौतम

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Dainik Gurujyoti Patrika

युवा पत्रकार अमित गौतम ने बताया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई बहुत दिनों से चली आ रही है यह परिणाम तक कब पहुंचेगी यह कह पाना बहुत कठिन है क्योंकि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैसे की भूख ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह पनपने में मदद की है। यह टिप्पणी कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय के ज्ञात से ज्यादा अधिक संपत्ति के मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए की है अदालत ने कहा है संविधान के तहत स्थापित अदालतों का देश के लोगों के प्रति कर्तव्य है कि वे दिखाएं कि भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नही किया जा सकता। साथ ही वे अपराध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी करे।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार का मूल कारण नैतिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों का खास होना है जो कि आज हर क्षेत्र में फैल चुका है। भ्रष्टाचार को देश से मुक्त करने के लिए हमें भी अपना योगदान देना होगा उल्लेखनीय है कि भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक
स्तर पर नैतिकता के गिरावट के मूल कारण समान ही है जिसमें अधिकतम भौतिक सुख की प्राप्ति,शक्ति का केंद्रीकरण ,भ्रष्ट गतिविधियां,किसी भी स्थिति में नाम कमाने की लालसा,नेता अधिकारी गठजोड़,सार्वजनिक नैतिक मूल्यों की अपेक्षा व्यक्तिगत मूल्यों का हावी होना इत्यादि प्रमुख वजहें हैं। इसके अलावा राजनीति में अपराधीकरण, धन बल का प्रयोग बढ़ने से राजनीतिक नैतिकता में गिरावट देखने को मिल रही है। और वहीं प्रशासकों की शिक्षा और चयन प्रक्रिया में खामियों की वजह से नैतिक मूल्यों से शून्य व्यक्तियों का प्रवेश हो जाता है और अंततः भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने लगता है।
अक्सर देखा जाता है कि जेल की सजा होने व अपराध होने या भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी भ्रष्टाचारियों का गौरवगान किया जाता है। वास्तव में यह स्थिति भारतीय समाज के लिए चिंता का बहुत बड़ा विषय है ? आज भी समाज में कुछ ऐसे लोग मिल ही जाते हैं जो दोषी पाए जा चुके भ्रष्टाचारियों के पक्ष में भांति- भांति के तर्क देते हैं ऐसे में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है अतः समय- समय पर ऐसे लोगों को समाज के द्वारा अपने कर्तव्य का बोध कराया जाना बेहद आवश्यक हो जाता है। ऐसा नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा कोई निर्णय दिया है लेकिन न्यायालय के लगातार प्रयासों के बावजूद भी सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार कम नहीं हो रहा है। न्यायालय ने अब यह निर्धारित किया है कि अभियोजन पक्ष और अपराधी के विरुद्ध न्यायालय में प्रस्तुत सभी साक्ष्यों के आधार पर ही अपराधी को दोष सिद्ध माना जाएगा। लिहाजा देश की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं और अन्य सार्वजनिक सेवाओं में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए प्रसंशनीय है।
साथ ही चुनाव अभियान में खर्चे होने वाली राशि को सीमा बाधने के साथ ही चुनाव आयोग की इस राशि की प्राप्ति की तह तक जाना होगा क्योंकि यह भी भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण है। दशकों से चुनावी खर्च की सीमा तय करने की कोशिश विफल रही है। राजनीतिक दल गुप्त तरीके से राशि खर्चे करते हैं और इसका कोई भी ब्यौरा नहीं देते हैं इसके लिए चुनाव आयोग को कड़े कदम उठाने पड़ेगें। और राजनीतिक दलों से मिलने वाली धनराशि का पूरा ब्यौरा देने के लिए नियम बनाने होगें। उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के खातों को अपडेट करना अनिवार्य होगा। कर की भी उतनी राशि की छूट दी जाएगी जिसका लेखा जोखा स्पष्ट हो ऐसा करने के लिए चुनाव आयोग को खुली छूट देनी होगी। और अपडेट के बाद गड़बड़ी पाए जाने पर जुर्माना लगाए जाने से लेकर अयोग्य करार देने का अधिकार चुनाव आयोग को देना चाहिए।
यह इसलिए जरूरी है कि भ्रष्टाचार का दीमक आज भी समाज को खोखला कर रहा है। ट्रांसपेरेशी इंटरनेशनल के करप्शन प्रसेप्शन में भारत को वर्ष 2021 को 85 वां स्थान दिया गया है यह रैकिंग इस बात को दर्शाती है कि हमारे नीति-नियंताओं को सुशासन स्थापित करने की दिशा में अभी काफी काम करना है। जन भागीदारी से भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए सबसे पहले जनता को शसक्त बनाना होगा। सरकार द्वारा गठित किए गए विभिन्न सरकारी प्रयास जैसे सूचना का अधिकार, नागरिक चार्टर, सामाजिक अंकेक्षण, ई-अभिशासन आदि कदम बेहद प्रभावी रहें हैं। इसके बावजूद भी भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग सका है। (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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